तेल
के खेल में रूस और ओपेक देशों को पटखनी देने के लिए रणनीति है तैयार करेगा भारत
अंतरराष्ट्रीय
बाजार में लगातार बढ़ रही कच्चे तेल की कीमतों ने सरकार के लिए चिंता बढ़ा दी है।
कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ने का सीधा असर घरेलू बाजार पर पड़ता है और देश में
महंगाई को बढ़ावा मिलता है। भारत की सबसे बड़ी परेशानी विश्व बैंक की उस रिपोर्ट
को लेकर भी बनी हुई है जिसमें तेल के दामों में 20
फीसद तेजी की बात कही गई है। यदि ऐसा हुआ तो कच्चे माल समेत दूसरी सेवाओं और
उत्पादों की कीमतों में भी करीब दो फीसद की तेजी आ जाएगी। आपको बता दें कि भारत
दुनिया में तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीददार है। भारत की जरूरत का करीब 63 फीसद तेल खाड़ी देशों से ही खरीदा जाता रहा
है। पूरी दुनिया में ईरान, इराक, सऊदी
अरब और वेनेजुएला इसके सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में शामिल हैं। भारत ने वर्ष 2017 में करीब 44
लाख बैरल प्रति दिन कच्चे तेल का आयात किया था।
75 डॉलर प्रति बैरल पहुंची तेल की कीमत
गौरतलब
है कि तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी है।
जबकि डॉलर के मुकाबले रुपये लगातार कमजोर हो रहा है। यह इस लिहाज से भी अहम हो
जाता है क्योंकि वर्ष 2014 में तेल की कीमतें 35 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। लेकिन दूसरी
तरफ तेल की कीमतों में आई गिरावट का बुरा असर सऊदी अरब, यूएई समेत दूसरे तेल उत्पादक देशों पर पड़ा
था। तेल की कीमतों में आई गिरावट से वहां की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई थी। यही
वजह है कि अब ओपेक समेत रूस तेल के उत्पादन में रणनीतिक तरीके से लगातार गिरावट ला
रहे हैं। ये देश तेल की कीमतों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में 80 से 100
डॉलर प्रति बैरल तक ले जाना चाहते हैं। इससे बचने के लिए ही भारत अब तेल खरीददार
वाले देशों का एक ऐसा गठजोड़ बना रहा है जो अंतरराष्टीय बाजार में अपना प्रभाव
डालकर तेल की कीमत कम करने में सहायक साबित हो सकेगा। इसके जरिए भारत ने एक नई
रणनीति के तहत पेट्रोलियम उत्पादक देशों पर दबाव डालने की कोशिश करेगा।
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