कोरोना के संकटकाल में जहां लोग घरों में दुबक
गए हैं, वहीं जिला
मुख्यालय से करीब 120
किमी दूर मानपुर ब्लॉक के अंतिसंवेदनशील नक्सल प्रभावित आदिवासी गांव खुरसेकला के
ग्रामीणों ने लॉकडाउन के दाैरान श्रमदान कर तीन किमी लंबी सड़क बना ली है। आजादी
के बाद से पिछले करीब 70
वर्षों से ग्रामीण गांव में सड़क निर्माण की बाट जोह रहे थे। शासन-प्रशासन को
दर्जनों बार आवेदन देकर थक चुके हैं। जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाते भी ग्रामीण जब
थक गए तो लॉकडाउन में गांव वालों ने बैठक करके खुद ही सड़क निर्माण करने का फैसला
लिया। फिर क्या...? 15 से
20 दिनों में
ग्रामीणों ने कड़ी मेहनत कर श्रमदान से ही तीन किलाेमीटर लंबी सड़क बना डाली।
अब महज डेढ़ किमी का रास्ता ही बाकी रह गया है।
इसे भी ग्रामीण दो-चार दिन में कम्प्लीट करने की तैयारी में है। ग्रामीणों से जब
इस फैसले की पड़ताल की गई, तो
इसमें गांव वालों की पीड़ा सामने आई।
ग्रामीणों ने बताया कि हर साल बारिश के दिनों
में गांव टापू बन जाता है। सड़क नहीं होने से ब्लॉक मुख्यालय ही नहीं आसपास के
गांव से भी संपर्क नहीं रहता। जिसके कारण बारिश से पहले कोरोना के संकटकाल में
ग्रामीणों ने श्रमदान कर अपने गांव में सड़क बना ली है।
खाट में लादकर ले जाते थे मरीज
लॉकडाउन
में श्रमदान कर तीन किमी तक कच्ची मुरुम वाली सड़क बनाने वाले ग्रामीणों ने बताया
कि सड़क नहीं होने के कारण एंबुलेंस भी गांव से दो किमी पहले ठहर जाती थी। गर्भवती
या अन्य मरीजों को खाट में लादकर दो किमी पैदल जाना पड़ता था।
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