रायपुर ! सीसल शिल्प के आकर्षक और मनमोहक, सजावटी
एवं उपयोगी सामान महिलाओं की पहली पसंद बन गई है। लोकप्रियता के साथ ही इन
उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। छत्तीसगढ़ के साथ ही प्रदेश के बाहर में आयोजित
होने वाले हस्तशिल्प मेलों में सीसल शिल्प के उत्पाद फ्रूट-ट्रै, हैंगर,
बेबी
डॉल, मैप, टी-कोस्टर, फूट-रेस्ट,
पेपर
होल्डर, मैगजीन-हैंगर आदि सामग्रियां लोगों को खासे पसंद आ रहे हैं।
हस्तशिल्प विकास बोर्ड के अधिकारियों से मिली
जानकारी के अनुसार सीसल शिल्प के उत्पाद किफायती होने के साथ-साथ आकर्षक और मनमोहक
रंगों में सजावटी एवं उपयोगी सामान तैयार किए जाते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य जनजातीय
बाहुल्य होने के साथ ही विविध प्रकार की कला एवं संस्कृति की विरासत रही है।
जनजाति बाहुल्य जिला बस्तर के मुख्यालय जगदलपुर से 15 किलोमीटर दूर
परचनपाल ग्राम और परचनपाल से 5 किलोमीटर की दूरी पर कोल्चूर एवं भरनी
ग्राम स्थित है जहां पर सीसल का प्लांटेशन वन विभाग द्वारा किया गया है। सीसल एक
प्लांट है जिसकी पत्तियों से रेसे निकाले जाते हैं। यह रेशे सफेद रंग के एवं मजबूत
होते हैं इनसे बनने वाली रस्सियों का व्यावसायिक उपयोग समुद्री जहाज को बांधने के
लिए लंगर में किया जाता है। यह रस्सियां पानी में महीनों डूबे रहने के बाद भी सड़ती
नहीं हैं। इन्हीं सीसल के रेशे से विभिन्न प्रकार के सजावटी एवं उपयोगी सामान का
निर्माण शिल्पकारों के द्वारा किया जाता है। हस्तशिल्प विकास बोर्ड द्वारा स्थानीय
युवक-युवतियों के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित की जाती है तथा
हस्तशिल्प प्रदर्शनियों के माध्यम से विपणन की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है।
हस्तशिल्प विकास बोर्ड द्वारा संचालित बस्तर जिले के परचनपाल शिल्पग्राम में सीसल
शिल्प का काम करने वाले कई परिवार निवासरत हैं।
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