बस्तर ! अब वह दिन दूर नहीं जब छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh)
के
बस्तर (Bastar) की आबोहवा में बारूद के धमाके और बारूद की गंध
नहीं बल्कि दिखाई देगी मोतियों (Pearls) की बहार. प्रकति का स्वर्ग कहलाने वाले
बस्तर में यूं तो प्रकति ने सुदंरता के साथ ही ऐसा खजाना सौंपा है, जिसका
उपयोग करके लोग अपनी कठिन राह को आसान बना सकते हैं. बस जरूरत है थोड़ी लगन,
मेहनत
और आत्मविश्वास की. अगर ये सब आपमें हैं तो आप भी बस्तर की मोनिका की तरह
स्वावलंबी बनकर खुद अपनी पहचान बनाते हुए औरों को रास्ता दिखा सकते हैं.
बस्तर (Bastar) में आदिवासियों
(Tribals) के लिए काम करने वाले संस्था की संचालिका मोनिका श्रीधर ने बीस महीने
पहले नदी और तालाबों में सीप की खेती करने का मन बनाया. मोनिका की ये मेहनत अब
धीरे धीरे रंग ला रही है. मोनिका बताती हैं कि कई तरह की किताबें और जानकारियों को
जुटाने के बाद उन्होंने अपने साथ काम करने वाले कुछ आदिवासियों की मदद से सीप
पालने का काम शुरू किया. इसके लिए स्थानीय संसाधनों की मदद ली गयी .
छत्तीसगढ़ के अलावा दूसरे प्रांत गुजरात,
बंगाल,
दिल्ली,
झारखंड
से सीपों को मंगाया गया. बाहर से मंगाए सीपों के साथ ही बस्तर के नदी तालाब में
मिलने वाले सीपों को एक साथ तालाब में डाला गया. सीप पलने और बढ़ने के लिए बस्तर
का वातावरण अनुकुल है. ढाई सालों के अथक प्रयास के बाद जो चाहा वह मिला. यानि
बस्तर में सीप की खेती करने का प्रयोग सफल हुआ.
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