रायपुर। राज्यपाल जगदलपुर में बस्तर
विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल हुई। उन्होंने कहा कि हम लोग शिक्षा
को रोजगार से जोड़कर देखते हैं और मूल्यांकन का आधार रोजगार को बनाते हैं। मगर
शिक्षा वस्तुत: संस्कार है, जिससे
मनुष्य-जीवन को एक दृढ़ आधारभूमि मिलती है। जीवन-यापन के लिए जीविका तो चाहिए ही, परंतु संस्कार के बिना मनुष्य की
अर्थवता नहीं साबित होती। इस अवसर पर 200 मेधावी छात्र-छात्राओं को पदक और उपाधि दी गई।
राज्यपाल ने दीक्षांत-समारोह में उपाधि प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं तथा
प्रावीण्य-सूची में स्थान पाने वाले मेघावी छात्र-छात्राओं को बधाइयां एवं
शुभकामनाएं दी और कहा कि वे अपने व्यावहारिक जीवन में भी ऐसी ही प्रवीणता का परिचय
दें और अपने परिवार, समाज
और देश का नाम रौशन करें।
राज्यपाल ने कहा कि हमारे आदिवासी भाईयों एवं
बहनों के पास जो संस्कार हैं, वह
किसी भी दृष्टि से पढ़े-लिखे व्यक्ति के संस्कार से कम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि
प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करने में जो ज्ञान मिलता है, वह किताबों में अभी पूरा नहीं आ पाया
है। शिक्षा संस्कार के साथ-साथ कौशल-विकास का माध्यम है और जिस युवा में शिक्षा
प्राप्त करने के बाद कौशल है, तो
वह बेरोजगार भला कैसे हो सकता है। बस्तर वनोपज, कला और खनिज संसाधन से सम्पन्न है। इस दिशा में विश्वविद्यालय की
भूमिका रोजगारपरक शिक्षा की उपलब्धता पर होनी चाहिए। इसे ध्यान रखते हुए बस्तर
विश्वविद्यालय में अधिक से अधिक रोजगारपरक पाठयक्रम संचालित किये जाएं, ताकि बस्तर अंचल के युवाओं के लिए
शिक्षा के साथ ही रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित किया जा सके।
उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा कि
विश्वविद्यालय से दीक्षित युवा अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल होंगे और समाज में
अपनी वास्तविक भूमिका का निर्वाह कौशल के साथ करेंगे। उन्होंने कहा कि
विश्वविद्यालय से भी यही अपेक्षा है कि इस अंचल में उपलब्ध प्राकृतिक वन संसाधन के
स्त्रोतों पर शोध करें। इसके साथ ही युवाओं से उस वैज्ञानिक चेतना के विकास का
मार्ग प्रशस्त करें, जिससे
वे व्यक्तिगत, जातिगत, भाषागत, धर्मगत, क्षेत्रगत
संकीर्णता से ऊपर उठकर वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को आत्मसात कर सकें।
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