अयोध्या मामले
में गठित मध्यस्थता पैनल ने सीलबंद लिफाफे में दूसरी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को
सौंपी। मुस्लिम पक्ष ने प्रस्ताव दिया है कि विवादित स्थल पर मंदिर बनाने की इजाजत
दी जा सकती है। इस बीच, पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य बृहस्पतिवार
को चैंबर में मिलेंगे। इस दौरान रिपोर्ट पर तथा इसे सार्वजनिक करने पर चर्चा हो
सकती है।
दोनों पक्ष
पूजास्थल कानून-1991 के तहत समझौते के लिए राजी हैं। इसके तहत ऐसे
किसी मस्जिद या धर्मस्थल को लेकर कोई विवाद नहीं होगा जो 1947
से पूर्व मंदिर गिराकर बनाए गए हैं। इस कानून के दायरे में अयोध्या विवाद नहीं है।
मुस्लिम पक्ष ने
सुझाया कि सरकार विवादित जमीन का अधिग्रहण कर सकती है। बोर्ड एएसआई के अधिग्रहण
वाली कुछ चुनिंदा मस्जिदों की सूची सौंप सकता है, जहां
नमाज पढ़ी जा सके। सुन्नी बोर्ड के अध्यक्ष ने यह प्रस्ताव दिया है कि अगर राज्य
सरकार अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए कोई और उचित जगह दे और पुरानी मस्जिदों का
जीर्णोद्धार करवाए तो वह हिंदुओं को विवादित स्थल पर मंदिर बनाने की इजाजत दे सकते
हैं।
सुन्नी बोर्ड इस
मामले में मुस्लिम पक्षकारों का प्रतिनिधित्व कर रहा है लेकिन छह अन्य पक्षकार भी
हैं। लिहाजा अन्य पक्षकारों का रुख देखना होगा। इस बीच, सुप्रीम
सुनवाई से जुड़े एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि सुनवाई पूरी होने के बाद ऐसी रिपोर्ट का
औचित्य नहीं है।
मध्यस्थता
प्रक्रिया भाईचारे और समझदारी के माहौल में हुई। यही देश की रवायत है। सुप्रीम
कोर्ट का भरोसा जताने के लिए शुक्रिया। - श्रीश्री रविशंकर, सदस्य
मध्यस्थता पैनल
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.