राष्ट्रपति कोविंद द्वारा आगामी नवंबर माह में ली जाने वाले गवर्नर कांफ्रेंस के पूर्व नई दिल्ली में जनजातीय मुद्दों से संबंधित राज्यपालों के उप समूहों की बैठक हुई। इसकी अध्यक्षता झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने की। इस बैठक में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके शामिल हुईं, जिसमें उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिए। केन्द्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुण्डा ने अपने विभाग में संचालित योजनाओं की जानकारी दी और उन्होंने कहा कि बैठक में आए सकारात्मक सुझाव के आधार पर उपयुक्त नीति बनाई जाएगी।
राज्यपाल उइके ने सुझाव देते हुए कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों के प्रगति प्रतिवेदन त्रैमासिक प्राप्त हो, जनजातीय सलाहकार परिषद का अध्यक्ष गैर राजनीतिक हो। अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय योजनाओं के लिए निगरानी तंत्र विकसित किया जाए, जनजातीय संस्कृति का संरक्षण एवं उनका दस्तावेजीकरण किया जाए। इसके साथ ही निरस्त पट्टों का पुनरपरीक्षण किया जाए और जनजातियों को वनोपज का उचित मूल्य मिले। उन्होंने कहा कि जनजातियों की शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ किया जाए और पेसा कानून का क्रियान्यवन के लिए प्रशिक्षण दिया जाए। जनजातीय क्षेत्रों में नियंत्रित खनन हो एवं उन्हें प्रशिक्षित किया जाए। उइके ने कहा कि विस्थापन नियमों का क्रियान्वयन उचित रीति से किया जाना चाहिए। उन्होंने जनजातीय क्षेत्रों में कार्यरत सभी कर्मियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किये जाने और जनजातीय क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं प्राथमिकता से उपलब्ध कराने का सुझाव दिया।
राज्यपाल अनुसुईया उइके ने बैठक में बताया कि पांचवी अनुसूची के तहत राज्यपाल को प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए छत्तीसगढ़ में यह विशेष निर्णय लिया गया है कि बस्तर और सरगुजा संभाग के अंतर्गत आने वाले जिले के केवल स्थानीय निवासियों से ही तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणियों के पदों पर भर्ती की जाएगी। उन्होंने बताया कि 20 सदस्यीय जनजातीय सलाहकार परिषद् का गठन किया गया है। साथ ही जनजातियों की बोलियों को संरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है तथा उनके लोक नृत्य एवं गीत को सरंक्षण हेतु आदिवासी लोक कला महोत्सव का आयोजन किया जाता है। देवगुड़ी निर्माण के लिए 01 लाख रूपए का अनुदान दिया जाता है। आदिवासी क्षेत्रों में हाट बाजारों में मोबाईल एम्बुलेंस के माध्यम से स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है।
बैठक में त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस, असम के राज्यपाल जगदीश मुखी, मेघालय के राज्यपाल तथागत राय और ओडि़शा के राज्यपाल प्रो. गणेशी लाल और भारत सरकार जनजातीय मामलों के मंत्रालय के सचिव दीपक खाण्डेकर भी उपस्थित थे।
राज्यपाल उइके ने सुझाव देते हुए कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों के प्रगति प्रतिवेदन त्रैमासिक प्राप्त हो, जनजातीय सलाहकार परिषद का अध्यक्ष गैर राजनीतिक हो। अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय योजनाओं के लिए निगरानी तंत्र विकसित किया जाए, जनजातीय संस्कृति का संरक्षण एवं उनका दस्तावेजीकरण किया जाए। इसके साथ ही निरस्त पट्टों का पुनरपरीक्षण किया जाए और जनजातियों को वनोपज का उचित मूल्य मिले। उन्होंने कहा कि जनजातियों की शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ किया जाए और पेसा कानून का क्रियान्यवन के लिए प्रशिक्षण दिया जाए। जनजातीय क्षेत्रों में नियंत्रित खनन हो एवं उन्हें प्रशिक्षित किया जाए। उइके ने कहा कि विस्थापन नियमों का क्रियान्वयन उचित रीति से किया जाना चाहिए। उन्होंने जनजातीय क्षेत्रों में कार्यरत सभी कर्मियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किये जाने और जनजातीय क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं प्राथमिकता से उपलब्ध कराने का सुझाव दिया।
राज्यपाल अनुसुईया उइके ने बैठक में बताया कि पांचवी अनुसूची के तहत राज्यपाल को प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए छत्तीसगढ़ में यह विशेष निर्णय लिया गया है कि बस्तर और सरगुजा संभाग के अंतर्गत आने वाले जिले के केवल स्थानीय निवासियों से ही तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणियों के पदों पर भर्ती की जाएगी। उन्होंने बताया कि 20 सदस्यीय जनजातीय सलाहकार परिषद् का गठन किया गया है। साथ ही जनजातियों की बोलियों को संरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है तथा उनके लोक नृत्य एवं गीत को सरंक्षण हेतु आदिवासी लोक कला महोत्सव का आयोजन किया जाता है। देवगुड़ी निर्माण के लिए 01 लाख रूपए का अनुदान दिया जाता है। आदिवासी क्षेत्रों में हाट बाजारों में मोबाईल एम्बुलेंस के माध्यम से स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है।
बैठक में त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस, असम के राज्यपाल जगदीश मुखी, मेघालय के राज्यपाल तथागत राय और ओडि़शा के राज्यपाल प्रो. गणेशी लाल और भारत सरकार जनजातीय मामलों के मंत्रालय के सचिव दीपक खाण्डेकर भी उपस्थित थे।
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