Saturday 16 February 2019

पुलवामा हमला, आतंक के विनाश का हो शंखनाद – सी. उदय भास्कर


जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के काफिले पर हुआ आत्मघाती हमला कश्मीर घाटी में पिछले दो दशकों में भारतीय सुरक्षा बलों पर सबसे बड़ा आतंकवादी हमला है। इसमें 40 से ज्यादा जवानों की जान चली गई और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। इस बर्बर हमले की जिम्मेदारी प्रतिबंधित आतंकी संगठन ‘जैश-ए-मोहम्मद ने ली है। आत्मघाती हमलावर की पहचान स्थानीय युवक आदिल अहमद डार के रूप में हुई है, जिसने सीआरपीएफ के काफिले की एक बस से विस्फोटकों से भरी अपनी कार को भिड़ा दिया। इस काफिले में करीब 80 गाड़ियां शामिल थीं। इस हमले से देश की जनता को बहुत पीड़ा पहुंची है। वह आतंकवादियों को पनाह देने वालों और जाहिर है कि पाकिस्तान के खिलाफ आक्रोशित भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत जल्द कड़ी कार्रवाई करने का वादा किया है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि सरकार ने बदला लेने के लिए सुरक्षा बलों को खुली छूट दे दी है। उन्होंने यह भी कहा है कि पाकिस्तान को दुनिया में अलग-थलग किया जाएगा। इसकी शुरुआत भी कर दी गई है। केंद्र सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए पाकिस्तान से ‘सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र यानी एमएफएन का दर्जा वापस ले लिया है। यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों के तहत दोनों देशों के बीच कारोबार को आसान बनाने के लिए भारत ने उसे दे रखा था। पुलवामा हमले की अमेरिका, रूस, फ्रांस, जर्मनी और अन्य प्रमुख ताकतों ने भी एक सुर में निंदा की है, लेकिन यह ध्यान रहे कि चीन दबे स्वर में पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है। चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जैश-ए-मोहम्मद और उसके आकाओं को अपने वीटो से जिस तरह से बचाता रहा है, उसे भला कौन भूल सकता है? पुलवामा में हुआ हमला भारत पर हुआ पहला आतंकवादी हमला नहीं है। जैश-ए-मोहम्मद ने नवंबर 1999 में जम्मू-कश्मीर में पहला फिदायीन हमला किया था। पुलवामा की यह दूसरी ऐसी घटना है, जिसमें जैश ने किसी आत्मघाती हमलावर का प्रयोग किया। वह जिस तरह से ऐसे हमलों के लिए स्थानीय युवाओं को प्रेरित कर रहा है, वह बेहद चिंतित करने वाला है। इस हमले के जवाब में भारत की ओर से कुछ सामरिक कार्रवाई हो सकती है। नियंत्रण रेखा के पार भी कुछ सैन्य कार्रवाई की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन पुलवामा सरीखे आतंकवादी हमलों के रोकने के लिए देश को दीर्घकालिक रणनीति विकसित करनी होगी। भारत जम्मू-कश्मीर में 1990 के आरंभिक दिनों से ही पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए छद्म-युद्ध का सामना कर रहा है। यही वह समय था, जब पाकिस्तान की सेना और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई ने दहशतगर्द गतिविधियों के जरिए भारतीय सेना और नागरिकों को निशाना बनाना शुरू किया था। इससे लड़ने का भारत का रिकॉर्ड मिला-जुला रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आने वाले दिनों में जटिल चुनौतियां कम होने वाली नहीं हैं, क्योंकि पाकिस्तान एक तो परमाणु शक्ति है और साथ ही साथ उसे चीन व इस्लामिक जगत के अन्य देशों का समर्थन-सहानुभूति भी प्राप्त है। ऐसे में भारत को अपनी सुरक्षा नीतियों पर पुनर्विचार करने और उन्हें आक्रामक ढंग से फिर से निर्धारित करने की जरूरत है।

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