Sunday 20 January 2019

21 जनवरी पौष पूर्णिमा से कल्पवास की शुरुआत हो चुकी है. जानिए- क्या होता है कल्पवास और क्या हैं इसके नियम..

पौष पूर्णिमा यानी 21 जनवरी से कल्पवास की शुरुआत हो गई है और यह अब माघी पूर्णिमा के साथ समाप्त होगा. मानव जीवन के लिए कल्पवास को आध्यात्मिक विकास का माध्यम माना जाता है, जिसके जरिए आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है. प्रयागराज में चल रहे कुंभ में करोड़ों की तादाद में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. प्रयागराज में गंगा-यमुना और सरस्वती के संगम पर कल्पवास की परंपरा आदिकाल से अभी तक चली आ रही है. मान्यता है कि प्रयागराज में कल्पवास से ब्रह्मा के एक दिन का पुण्य मिलता है. आइए जानते हैं आखिर कल्पवास क्या होता है और इसका महत्व क्या है.
क्या होता है कल्पवास
पौष पूर्णिमा के साथ आरंभ होने वाले कल्पवास के दौरान श्रद्धालु संगम के तट पर अपना डेरा जमाते हैं और लगभग एक महीने तक वहीं रहते हैं. कल्पवास एक बहुत ही कठिन साधना है. कल्पवास के दौरान व्यक्ति को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना पड़ता है. कल्पवास कर रहे व्यक्ति को जमीन पर सोना पड़ता है. कल्पवास शुरू करने के बाद इसे पूरे 12 वर्षों तक जारी रखना होता है. कल्पवास के दौरान साफ सुथरे पीले और सफेद रंग के कपड़ों का अधिक महत्व होता है. कल्पवास के दौरान व्यक्ति दिन में एक बार ही भोजन कर सकता है. साथ ही व्यक्ति को नियमपूर्वक तीन समय गंगा स्नान और यथासंभव भजन-कीर्तन, प्रभु चर्चा और प्रभु लीला का दर्शन करना जरूरी होता है.
कल्पवास के नियम क्या हैं
पद्म पुराण के अनुसार, कल्पवासी को इक्कीस नियमों का पालन करना चाहिए. कल्पवास में सत्य बोलना, अहिंसा, इन्द्रियों का शमन, दयाभाव, ब्रह्मचर्य का पालन, समेत कई अन्य नियमों का पालन करना पड़ता है. प्राचीन हिंदू वेदों में चार युगों- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग में कुल वर्षों के बराबर काल "कल्प" का उल्लेख है. कहा जाता है कि कल्पवास करने वाले व्यक्ति को पिछले सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही कल्पवास करने वाले व्यक्ति को कुंभ के दौरान हर सूर्योदय के समय गंगा में डुबकी लगाकर सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए.
कल्पवास के लाभ
मान्यता है कि कल्पवास करने वाला व्यक्ति अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है.
मोक्ष का संकल्प लेकर कल्पवास करने वाले व्यक्तियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
माघ मास के दौरान कुंभ में स्नान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है.
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने किया था कल्पवास
साल 1954 में कुंभ मेले में भारत के सबसे पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अकबर के किले में कल्पवास किया था. उनके कल्पवास के लिए खास तौर पर किले की छत पर कैंप लगाया गया था. यह जगह प्रेसिडेंट व्यू के नाम से जानी जाती है.

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