प्रणब
मुखर्जी की संघ की कार्यशैली को समझें
भारत
के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी महोदय आगामी दिनों में नागपुर मे संघ के एक माह
के प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह मे मुख्य अतिथि के नाते संघ के मंच पर उपस्थित
रहेंगे.
इस
समाचार से मीडिया क्षेत्र में काफ़ी हलचल है, उस हलचल में दलीय राजनीति के गर्द-गुबार
के कारण संघ की कार्यशैली के कई पहलू सामने नहीं आ रहे हैं.
वैसे
तो बड़े-बड़े कई राजनैतिक नेता विभिन्न अवसरों पर संघ के शिविर में, संघ के मंच पर, और अनौपचारिक विचार-विमर्श हेतु संघ के
लोगों से मिलते रहे हैं परंतु प्रणब दा के जाने की ख़बर कुछ ज़्यादा ही चर्चा में
रही है.
प्रणब
मुखर्जी की नागपुर यात्रा
एक
मीडियाकर्मी ने तो बताया कि अटकलबाज़ी चल रही है कि आवश्यकता पड़ने पर संघ के लोग
प्रणव मुखर्जी का नाम सत्ताशीर्ष के लिए सुझा सकते हैं, जबकि ये बात पूर्णतः निराधार है.
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के विस्तार का पहला क़दम है नवीन संपर्क यानी नये लोगों से संपर्क
करना. उनका स्वभाव, प्रकृति
और संघ के बारे में उनकी क्या जानकारी है ये सब जान-समझकर संघ के कार्य के बारे
में उनसे संवाद स्थापित करना.
आत्मीयता
और आदरपूर्वक संघ के स्वयंसेवक नए व्यक्ति को संघ से परिचित कराते हैं. प्रश्नों
का, जिज्ञासाओं
का उत्तर देते हैं, उत्तर
नहीं सूझने पर अपने अधिकारी से बातचीत कराने का वादा करते हैं और फिर संपर्क,
संवाद जारी रहता
है.
'पूरा
समाज है स्वयंसेवक'
संघ
की मान्यता है कि संभावनाओं के तहत संपूर्ण समाज के सभी लोग स्वयंसेवक हैं,
इनमें से कुछ आज
के हैं, और
कुछ आने वाले कल के.
नवीन
संपर्क से शुरू होकर समर्थक, कभी कार्यक्रमों में आने-जाने वाले, फिर रोज़ शाखा में कुछ दायित्व लेने वाले,
तत्पश्चात और नए
लोगों से संपर्क कर, उन्हें
शाखा में लाकर, स्वयंसेवक
बनानेवाले बनते हैं, सामान्यतः
हरेक का यह विकास क्रम होता है. जिसकी धुरी है संघ की शाखा.
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