मध्य
प्रदेश में किसान आंदोलन के गढ़ में फैल रहा डोडा चूरा के काले कारोबार का जाल
मध्य
प्रदेश में पिछले दो साल से डोडा चूरा को लेकर स्पष्ट सरकारी नीति के अभाव के कारण
करीब 27,000 अफीम उत्पादक किसानों के लिए इस मादक
पदार्थ का विशाल भंडार सिरदर्द बन गया है, जबकि
इसकी तस्करी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। पुलिस और अन्य सरकारी एजेंसियों के लिए
डोडा चूरा के करोड़ों रुपये के अवैध कारोबार पर अंकुश लगाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा
है।
अफीम
फसल के डोडों पर चीरा लगाकर इसमें से पहले अफीम और फिर पोस्त दाना (खसखस) निकाल
लिए जाने के बाद बचे सूखे भाग को डोडा चूरा कहते हैं। इसमें बेहद कम मात्रा में
मॉर्फीन होता है। राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष शिव कुमार शर्मा ने कहा, 'प्रदेश सरकार ने पिछले दो साल से किसानों से
डोडा चूरा की खरीद को लेकर स्पष्ट नीति घोषित नहीं की है। इससे यह पदार्थ मंदसौर, नीमच, रतलाम
और कुछ अन्य जिलों में अफीम की वैध खेती करने वाले हजारों किसानों की गले की फांस
बन गया है।
किसानों
पर दोहरी मार
'कक्काजी' के
नाम से मशहूर वरिष्ठ किसान नेता ने कहा, 'कुछ
समय पहले खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि प्रदेश सरकार
किसानों से डोडा चूरा खरीदकर नष्ट करेगी लेकिन अब तक डोडा चूरा की खरीद शुरू नहीं
हो सकी है।' उन्होंने कहा, 'स्पष्ट नीति के अभाव के कारण अफीम उत्पादक
किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। डोडा चूरा की सरकारी खरीद के इंतजार में वे इस
पदार्थ को नष्ट नहीं कर रहे हैं। इस मादक पदार्थ के कारण उन्हें हरदम डर सताता है
कि कहीं वे किसी आपराधिक मामले में न फंस जाएं।'
उन्होंने
मांग की कि प्रदेश सरकार को डोडा चूरा का समर्थन मूल्य जल्द से जल्द घोषित कर
किसानों से इस पदार्थ की खरीदी शुरू करनी चाहिए। इसके बाद प्रदेश सरकार भले ही
डोडा चूरा जला कर नष्ट कर दे या इसका जो चाहे उपयोग करे। जानकारों ने बताया कि
डोडा चूरा को लेकर दिक्कतें एक अप्रैल 2016 से
शुरू हुईं, जब केंद्र सरकार ने नशे के लिए इसके
बढ़ते इस्तेमाल के मद्देनजर इसे नष्ट किए जाने को ही सही विकल्प माना और देश भर में
इसकी खरीद-फरोख्त पर पूरी तरह रोक लगा दी।
किसानों
को समझ नहीं आता क्या करें
इससे
पहले, शराब की तरह डोडा चूरा की दुकानों के
ठेके दिए जाते थे। ठेकेदार किसानों से डोडा चूरा खरीदकर इन दुकानों के जरिए बेचते
थे। बहरहाल, पिछले दो साल से मंदसौर और सूबे के कुछ
अन्य जिलों में अफीम फसल की कटाई के बाद किसानों के सामने सवाल खड़ा हो रहा है कि
वे डोडा चूरा के भंडार का आखिर क्या करें।
इस
बीच, मादक पदार्थों के माफिया ने अफीम
उत्पादक इलाकों में गतिविधियां बढ़ा दी हैं। इन इलाकों से आए दिन डोडा चूरा के अवैध
कारोबार की खबरें आती हैं। डोडा चूरा की बढ़ती तस्करी के बारे में पूछे जाने पर
मंदसौर के पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार सिंह ने कहा, ' हमें
डोडा चूरा की अवैध खरीद-फरोख्त या इसकी तस्करी की सूचना जैसे ही मिलती है, हम फौरन कदम उठाकर आरोपियों को एनडीपीएस ऐक्ट
के तहत गिरफ्तार करते हैं।'
मंदसौर
में अफीम की खेती
उन्होंने
बताया कि प्रदेश सरकार इस विषय में विचार-विमर्श कर रही है कि किसानों के पास जमा
डोडा चूरा को किस तरह नष्ट किया जाए। मंदसौर जिले की गिनती देश के प्रमुख अफीम
उत्पादक इलाकों में होती है। मंदसौर में पिछले साल किसान आंदोलन के दौरान छह जून
को पुलिस गोलीबारी में छह किसानों की मौत हो गई थी। राजस्थान सीमा से सटा यह इलाका
इस घटना के बाद से किसान आंदोलनों और कृषि संकट पर जारी राजनीतिक गतिविधियों का
बड़ा राष्ट्रीय केंद्र बन गया है।
केंद्र
सरकार मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी किसानों को लाइसेंस
देकर उनसे अफीम की खेती कराती है। यह खेती चिकित्सकीय और वैज्ञानिक उद्देश्यों से
कराई जाती है जिस पर सरकार की पूरी निगरानी रहती है। चीरा लगाकर डोडे से निकाली गई
अफीम में मॉर्फीन और कोडीन जैसे मादक पदार्थ होते हैं जिनका इस्तेमाल दवाइयां
बनाने में किया जाता है।
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