राहुल
गांधी 'सोनिया के फॉर्मूले' से विपक्ष को साधने की कोशिश में हैं
आपने
राहुल और कुमारस्वामी की एक साथ मुस्कुराते हुए तस्वीरें देखी ज़रूर होंगी पर ये
भी सच है कि राहुल ने कर्नाटक चुनाव अभियान के दौरान कुमारस्वामी की पार्टी को
"भाजपा की बी टीम" बताया था.
लेकिन, चुनाव नतीजों के बाद भाजपा को रोकने के लिए
दोनों दल अब साथ आ चुके हैं. कुमारस्वामी की पार्टी के महज 37 विधायक हैं और वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने
जा रहे हैं. दूसरी तरफ़ दोगुने से ज़्यादा विधायक वाली कांग्रेस गठबंधन में एक
जूनियर साथी के रूप में होगी.
और
राहुल गांधी की समस्या यहीं से शुरू होती है. उन्हें अब भाजपा का सीधा मुक़ाबला
करने के लिए विपक्षी गठबंधन और उसकी एकता के लिए काम करना होगा.
आम
चुनावों के लिए राहुल गांधी के पास अब छह महीने से कुछ ही ज़्यादा वक़्त है.
उन्हें विरोधियों को वैसे ही एक साथ लाना होगा जैसे वो गुजरात चुनाव के दौरान
पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को साथ लाए थे. राहुल के
लिए दोनों को एक मंच पर साथ लाना आसान नहीं था.
कर्नाटक
चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने कोई भी तरीक़ा नहीं छोड़ा, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. कांग्रेस पार्टी
भी इस बात को पूरी तरह से समझ गई होगी कि अगर चुनाव से पहले जेडीएस के साथ चुनावी
गठबंधन होता तो चुनावी नतीजे कुछ और होते.
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने माखौल उड़ाते हुए कहा था कि ख़ुद को राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी
पार्टी कहने वाली कांग्रेस एक "पीपीपी पार्टी (पंजाब, पुद्दुचेरी और परिवार)" है.
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