शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती की निशानी प्रयाग
में हमेशा यादगार रहेगी
कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी
जयेंद्र सरस्वती का प्रयाग से अटूट रिश्ता रहा है। त्रिवेणी बांध पर उन्होंने
दक्षिण भारतीय पांदीन शैली आदि शंकर विमान मंडपम मंदिर बनवाया था, जो
संगमनगरी की उत्कृष्ट वास्तु कृतियों में से एक है। वह प्रयाग में गरीब बच्चों के
लिए स्कूल भी खोलना चाहते थे लेकिन ईश्वर को मंजूर नहीं था और उनकी यह इच्छा पूरी
नहीं हो सकी। उनके निधन से देश भर के संत समाज में शोक की लहर दौड़ गई है। कांची
के शंकराचार्य ने 2013 के कुंभ में अमावस्या के दिन संगम में डुबकी
लगाई थी।
कांची काम कोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र
सरस्वती के निधन की खबर सुबह जैसे ही शंकर विमान मंडपम पहुंची, वहां
के प्रधान पुजारी रमणी शास्त्री अवाक रह गए। अखाड़ों, मठों, मंदिरों,
तीर्थों
से शंकराचार्य के निधन पर शोक-संवेदनाओं का फोन पर तांता लग गया। स्वामी जयेंद्र
सरस्वती का प्रयाग के प्रति अगाध प्रेम था। काशी में काम कोटिश्वर मंदिर की तर्ज
पर दक्षिण भारतीय श्रद्धालुओं के लिए उन्होंने 1969 में त्रिवेणी
बांध पर आदि शंकर विमान मंडपम की आधारशिला रखी थी। इस मंदिर का कुंभाभिषेक 17
मार्च 1987 को हुआ था। तीन मंजिला इस मंदिर में भूतल पर कामाख्या देवी और प्रथम
तल पर तिरुपति बाला का धाम श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन चुके है। इसके बाद
वाले तल पर एक ही पत्थर में योग सहस्त्रलिंग की प्रतिमा की छटा देखते बनती है।
इसमें एक साथ एक हजार शिवलिंगों के दर्शन होते हैं। मंदिर के पुजारी रमणी शास्त्री
बताते हैं कि शंकराचार्य ने पांच वर्ष पूर्व लगे कुंभ में संगम में डुबकी लगाई थी।
तब उन्होंने पांच से 11 फरवरी तक यानी सात दिन तक प्रयाग में प्रवास
किया था। वह गरीब बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा देने के लिए स्कूल खोलना चाहते थे।
उनकी इच्छा पर ही जार्ज टाउन में शंकर विद्यालय खोला भी गया था लेकिन कतिपय
दिक्कतों के चलते संचालित नहीं हो सका।
आदि शंकराचार्य ने पंचम पीठ की जो व्यवस्था दी
थी, उसकी स्वीकार्यता को स्वामी जयेंद्र सरस्वती महाराज ने देश-दुनिया
में बढ़ाया था। उन्होंने जीवन पर्यंत, धर्म, सनातन संस्कृति
और वेद के प्रचार प्रसार के लिए जो काम किया वह हमेशा अनुकरणीय रहेगा।
रामानंदाचार्य रामनेरशाचार्य जी महाराज।
कांची मठ के स्वामी जयेंद्र सरस्वती के तपस्वी
जीवन से हमेशा प्रेरणा मिलती रही है। वह अत्यंत सरल और विनम्र व्यक्तित्व के संत
थे। उन्होंने हमेशा लोकहित के लिए काम किया। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
कांची कामकोटि पीठ के स्वामी जयेंद्र सरस्वती
महाराज अत्यंत स्नेही और मधुर स्वभाव के धनी थे। उनसे कई अवसरों पर मेरी मुलाकात
हुई। उन्होंने हमेशा मुझे अपनापन दिया। उनके कार्यों को हमेशा याद किया जाएगा।
नरेंद्र गिरि महाराज, अध्यक्ष-अखाड़ा परिषद।
कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य के निधन पर
प्रयाग में शोक की लहर दौड़ गई है। बुधवार को जगह-जगह शोक सभाओं में सनातन
संस्कृति के प्रति उनके योगदान को सराहा गया।
चौखंडी कीडगंज में सुभाष पांडेय की अध्यक्षता
में हुई शोक सभा में उनके निधन को अपूरणीय क्षति करार दिया गया। इस मौके पर
राजेंद्र पालीवाल, रामबाबू शर्मा, संतोष बारद्वाज,
गोपाल
शर्मा, अमरनाथ तिवारी, रवि मिश्र, नन्हें लाल
शर्मा समेत अनेक लोगों ने शोक व्यक्त किया। इसी तरह त्रिपौलिया स्थित बाल रूप
हनुमान मंदिर में आचार्य किशोर पाठक की अध्यक्षता में हुई सभा में उनके निधन पर
शोक जताया गया। मुकेश पाठक, मदन द्विवेदी, फूलचंद्र शुक्ल,
राम
मिलन मिश्र ने श्रद्धांजलि अर्पित की।
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