Friday 16 February 2018

सुप्रीम कोर्ट का फैसला 137 साल पुराने कावेरी जल विवाद पर - पानी पर सबका हक


सुप्रीम कोर्ट का फैसला 137 साल पुराने कावेरी जल विवाद पर - पानी पर सबका हक


कावेरी जल विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि नदी के पानी पर किसी भी स्टेट का मालिकाना हक नहीं है। कर्नाटक को आदेश दिया कि वह बिलिगुंडलू डैम से तमिलनाडु के लिए 177.25 टीएमसी (थाउजेंड मिलियन क्यूबिक) फीट पानी छोड़े। हालांकि कोर्ट ने तमिलनाडु को मिलने वाले पानी में 14.75 टीएमसी फीट की कटौती की है। यानी अब उसे पहले से 5% कम मिलेगा। वहीं, कर्नाटक के कोटे में 14.75 टीएमसी का इजाफा किया है। यानी उसे अब पहले से 5% ज्यादा पानी मिलेगा।
- तमिलनाडु को कावेरी से अब कुल 404.25 टीएमसी फीट पानी मिलेगा। पहले उसे 419 टीएमसी फीट पानी मिलता था। कोर्ट ने कहा, यह फैसला अगले 15 साल लागू रहेगा।
- कोर्ट ने कावेरी बेसिन के 20 टीएमसी भूमिगत जल में से 10 टीएमसी फीट अतिरिक्त पानी निकालने की इजाजत दे दी है।
- 10 साल पहले कावेरी ट्रिब्यूनल ने तमिलनाडु को 192 टीएमसी फीट और कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट पानी देने का फैसला दिया था।
800 किमी लंबी कावेरी- तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पुडुचेरी से गुजरती है
- 800 किमी लंबी कावेरी नदी पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी पर्वत से निकलती है। यह कर्नाटक के कुर्ग में आता है। कावेरी तमिलनाडु और केरल में बहती है। बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले ये पुडुचेरी से भी गुजरती है। कावेरी नदी के बेसिन में कर्नाटक का 32 हजार वर्ग किमी और तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किमी का इलाका आता है।
- 15 हजार जवान तैनात| कर्नाटक, तमिलनाडु में तनाव के चलते सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई है। बेंगलुरू में 15 हजार जवान तैनात किए गए हैं। कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने फैसले पर खुशी जताई है।
सुनवाई: कर्नाटक, तमिलनाडु व केरल ने की थी अपील
- कावेरी नदी के पानी विवाद के निपटारे के लिए जून 1990 में केंद्र सरकार ने कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल बनाया था।
- ट्रिब्यूनल ने 2007 में फैसला सुनाया था। इस फैसले के खिलाफ कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी।
- सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा- बेंगलुरू में ग्राउंड वॉटर के लिए 10 टीएमसी फीट व शहर को पीने के पानी के लिए 4.75 टीएमसी पानी की जरूरत है। पीने के पानी को सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए।
तर्क: तमिलनाडु और कर्नाटक के पानी पर अपने दावे
- यह विवाद मुख्य रूप से तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच था। दोनों राज्य एक दूसरे को कम पानी देना चाहते थे। कर्नाटक कहता है कि वह नदी के बहाव के रास्ते में पहले पड़ता है, इसलिए पानी पर पहला हक उसका है।
- 1956 में कर्नाटक और तमिलनाडु नए राज्य बने। ऐसे में पुराने समझौते नए राज्यों के बीच लागू नहीं किए जा सकते। तमिलनाडु का कहना था कि अंग्रेजों के दौर में हुए समझौते का कर्नाटक को पालन करना चाहिए। उसे पहले जितना पानी मिलता है, मिलते रहना चाहिए। उसे कावेरी के पानी की ज्यादा जरूरत है।
विवाद: 137 साल पहले शुरू हुआ था पानी का विवाद
- मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज्य के बीच यह विवाद 1880 में शुरू हुआ था। उस वक्त अंग्रेजों की सरकार थी। 1924 में इन दोनों के बीच एक समझौता हुआ, लेकिन बाद में इस विवाद में केरल और पुडुचेरी भी शामिल हो गए। 1976 में चारों राज्यों के बीच समझौता हुआ। पर इसका पालन नहीं किया गया।
केरल को 30, पुडुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी मिलेगा
- सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि अब कर्नाटक को 284.75 टीएमसी फीट, तमिलनाडु 404.25 टीएमसी फीट, केरल को 30 और पुदुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी मिलेगा।
- केरल और पुडुचेरी को मिलने वाले पानी में कोई बदलाव नहीं किया गया है। पिछले साल 20 सितंबर को सीजेआई दीपक मिश्रा की तीन जजों की बेंच ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
किसे कितना पानी मिलेगा
- कर्नाटक: 270+14.75 = 284.75 टीएमसी फीट
- {केरल: 30 टीएमसी फीट
- तमिलनाडु: 419-14.75 = 404.25 टीएमसी फीट
- पुडुचेरी: 7 टीएमसी फीट

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