Thursday 31 August 2017

हजूर विधानसभा में विद्यालयों के 2800 शिक्षकों का सम्मान किया गया

हजूर विधानसभा में विद्यालयों के 2800 शिक्षकों का सम्मान किया गया



आगामी शिक्षक दिवस के पूर्व ही इसके उपलक्ष्य में हुजूर विधायक-भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रामेश्वर शर्मा एवं प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन द्वारा संतनगर के संत हिरदाराम गल्र्स आडिटोरियम में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में अपने विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न विद्यालयों के 2800 शिक्षकों का सम्मान किया गया। गुरूवार दोपहर आयोजित शिक्षक सम्मान समारोह में भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद्र गहलोत, म.प्र. की महिला एवं बाल विकास मंत्री  अर्चना चिटनिस, संत हिरदाराम जी के शिष्य सिद्धभाउ, विधायक रामेश्वर शर्मा, कृष्णमोहन सोनी, अपर कलेक्टर जी.पी. माली, जिला शिक्षा अधिकारी धर्मेन्द्र शर्मा, डी.पी.सी.  राठौर, बी.आर.सी. रविन्द्र जैन, चंद्रप्रकाश इसरानी, राम बसंल, दीपा वासवानी, भारती खटवानी, हीरो ज्ञानचंदानी, विष्णु गेहानी, मंडल अध्यक्ष पृथ्वीराज त्रिवेदी, रमेश हिंगोरानी, बसंत चेलानी, मनीष चैबे, सौरभ गंगारमानी, योगेश हिंगोरानी, सूरज यादव, हरीश बिनवानी, लविन मनसुखानी, विनोद राय, विवेक शर्मा, योगेश मलानी, सोनू यादव सहित अन्य जनप्रतिनिधि और विभिन्न विद्यालयों से आए 2800 से अधिक शिक्षक शामिल थे। कार्य्रकम के दौरान मंत्री  गहलोत, मंत्री  अर्चना चिटनिस, विधायक रामेश्वर शर्मा, सिद्धभाउ द्वारा संयुक्त रूप से क्रमशरू सभी शिक्षकों को मंच पर आमंत्रित कर शाल-फल और सम्मान पत्र भेंट कर उनका सम्मान किया गया। गरिमामय समारोह में सार्वजनिक सम्मान पर पाकर अधिकांश शिक्षक अभीभूत नजर आए। शिक्षकों का कहना रहा कि इस तरह से सम्मानित होने पर उनके मन में अपने कार्य के प्रति गर्व की अनुभूति आती है और समाज के प्रति दायित्व बोध जागृत होता है। कार्यक्रम के आयोजक-विधायक रामेश्वर शर्मा ने बताया कि गुरू-शिष्य पंरपरा के परिपालन में पिछले कई वर्षों से उनके द्वारा शिक्षक सम्मान कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस पर लगभग सभी विद्यालयों में भी कार्यक्रमों का आयोजन होता है और हमें यह कार्यक्रम वृहद् स्तर पद करना होता है इसीलिए शिक्षक दिवस के कुछ दिन पूर्व ही हमारे द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

शिक्षकों के कारण ही भारत को मिला था विश्वगुरू का सम्मान: थावरचंद्र गहलोत
प्राचीनकाल मे भी भारत की शिक्षा पद्धति काफी वैभवशाली थी। महर्षी सांदिपनी, गुरू वशिष्ठ, गुरू द्रोणाचार्य से लेकर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन तक ऐसे महान गुरू-शिक्षक हुए हैं जिनकी विद्वता का लोहा सारे विश्व ने माना था। शिक्षकों की विद्वता और त्याग तपस्या के बल पर ही भारत को विश्वगुरू का सम्मान हासिल था। यह सम्मान हमें फिर से पाना है तो इसमें भी शिक्षकों को ही बढ़ी भूमिका निभानी होगी। उक्त उद्गार भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद्र गहलोत ने गुरूवार को संतनगर में हुजूर विधायक रामेश्वर शर्मा के तत्वावधान में आयोजित भव्य शिक्षक सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होने कहा कि देश में आज भी शिक्षाविदों की कमि नहीं है, संपूर्ण विश्व आज भी भारत को उसी दृष्टिकोण से देखता है। इसीलिए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने अमेरिकी छात्रों के सामने भारतीय छात्रों की प्रशंसा करते हुए कहा था कि आप भी मेहनत करो, शिक्षा के प्रवीण बनो नहीं तो अमेरिका में सारी नौकरियां भी भारतीय ले जाएंगे।  गहलोत ने कहा कि मनुष्य की तीन श्रेणियां होती है। पहली श्रेणी वह है जो देने ही देने का काम कर रहती है। इसे संतो की श्रेणी कहा जाता सकता है, वे समाज से कुछ लेते नहीं अपितु सभी को आर्शीवाद देते हैं। ऐसे संतो को सभी प्रणाम करने जाते हैं, इनका सभी सम्मान करते हैं। दूसरी श्रेणी उन लोगों की होती है जो देते भी है और लेते भी है। इसे व्यवसायिक प्रवृत्ति भी कह सकते हैं इसमें आंशिक सम्मान मिलता है। तीसरी श्रेणी उन लोगों की होती है जो कि समाज से केवल लेने का काम ही काम करते हैं, बदले में कुछ देते नहीं है। ऐसे लोगों का कोई सम्मान नहीं करता है। शिक्षक मनुष्य की पहली और दूसरी श्रेणी के सदस्य हैं इसीलिए सम्मान के पात्र हैं। केंद्रीय मंत्री  गहलोत ने अपने उद्बोधन में मर्यादा पुरूषोत्तम राम के शिक्षण की चर्चा करते हुए कहा कि यह राम द्वारा अर्जित शिक्षा का ही प्रभाव था कि पिता का वचन निभाने के लिए वे राजपाट छोडकर वनवास में चले गए। इसी तरह भरत पर भी उसी शिक्षा का प्रभाव था कि वह राजपाट मिलने पर खुश होने के बजाए भाई को पुनरू राजपाट सौंपने के लिए मनाने वन में पहुंच गए। उन्होने उपस्थित शिक्षकों को आहवान करते हुए कहा कि शिक्षकों को स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करते हुए विद्यार्थियों को श्रेष्ठ नागरिक बनाने का प्रयास करना चाहिए।

विद्यार्थियों मे दायित्वबोध जगाएं शिक्षक: सिद्धभाउ जी
शिक्षक ही राष्ट्र का मार्गदर्शन करने का हौसला रखते हैं। सम्मान से अभीभूत शिक्षक विद्यार्थियों के अंदर दायित्वबोध जगांएगे जिससे राष्ट्र का निर्माण होगा। राष्ट्र अधिक सक्षमता के साथ खड़ा होगा। यह विचार शिक्षक सम्मान समारोह की अध्यक्षता कर रहे  सिद्धभाउ जी ने समारोह में आशीर्वचन देते हुए व्यक्त किए। उन्होंने स्मरण करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि युवा वह है जो वायुवेग से सोचे और वायुवेग से काम करे। इस राष्ट्र की तरूणाई को फिर से सशक्त बनाना होगा। आज युवा पश्चिम का अंधानुकरण करते हुए इंडोर खेलों की तरफ आकर्षित हो रहा है जिससे किसी प्रकार का स्वास्थ्य लाभ नहीं होता।  इसके लिए देशी खेलों की तरफ युवाओं को मोडना होगा। राष्ट्र को पूरे विश्व का फिर से विश्वगुरू बनाने का जिम्मा भी शिक्षकों पर है, इसके लिए शिक्षकों को सारी सुविधाएं भी देनी चाहिए जिससे वे अपने कर्म को पूरी कर्मठता से कर सके।  सिद्धभाउजी ने कहा कि हमारा सौभाग्य है कि हमे ऐसा विधायक मिला है जिसके ह्दय में संवेदनशीलता है, यही संवेदनशीलता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज जी के अंदर भी है। उन्होने सम्मानित होने वाले शिक्षकों को और अधिक ज्ञानवान बनने और इस ज्ञान की रोशनी घर घर तक फैलाने का आर्शीवाद भी दिया।

बच्चे को अच्छी शिक्षा-संस्कार देना माता पिता होने के मायने है:  अर्चना चिटनिस
बच्चे को जन्म देना ही माता पिता होने के मायने नहीं अपितु बच्चे को अच्छी शिक्षा-अच्छे संस्कार देकर श्रेष्ठ नागरिक बनाना भी माता पिता होने के मायने हैं। यह विचार म.प्र.शासन की महिला एवं बाल विकास मंत्री  अर्चना चिटनिस ने शिक्षक सम्मान समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यक्त किए। उन्होने कहा कि अनाथ वो नहीं होता जिसके माता पिता ना हो, अपितु अनाथ वह होता है जिसके गलती करने पर उसे डांटने वाला, समझाने वाला ना हो, उसे शिक्षा देने वाला ना हो। इसीलिए बच्चे के माता-पिता और शिक्षकों ने बच्चों को शिक्षा देने के साथ साथ गलतियों पर रोकते हुए सही मार्ग भी दिखलाना चाहिए। शिक्षा केवल सूचना मात्र नहीं है अपितु शिक्षा सोचना सिखाना है, निर्णय करना सिखाना है।  चिटनिस ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका श्रेष्ठ है। एक चाणक्य रहे तो एक हजार चंद्रगुप्त बना सकते हैं लेकिन एक हजार चंद्रगुप्त मिलकर भी एक चाणक्य नहीं बना सकते। उन्होने कहा कि शिक्षक के लिए सबसे बड़ा सम्मान यह होता है कि शिष्य उसका नाम रोशन करे।  चिटनिस ने भारतीय संस्कृति सभ्यता को वैभवशाली बताते हुए कहा कि आज के कुछ समय पहले तक, मात्र 15-20 साल पहले तक जन्म देने वाली एक मॉं होती थी। लेकिन बच्चे के पालन पोषण अकेले माता नहीं करती थी अपितु उसके दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची, बुआ-फूफा, मामा-मामी, मौसा-मौसी सहित आस पड़ोस, मित्र आदि बच्चे के विकास में अपनी भूमिका निभाते थे। इसीलिए प्रकृति को भी हमने रिश्तों के शब्दों से अपना बना लिया था, तभी तो चंदा मामा, बिल्ली मौसी, गाय माता, आदि शब्दों का प्रचलन था। इन रिश्तों से हमे नैसर्गिक शिक्षा मिलती थी। लेकिन आजकल के बच्चों को स्वयं हमने सभी से तोड़ दिया है।  चिटनिस ने इस अवसर पर सम्मानित होने वाले सभी शिक्षकों को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं देते हुए उनके उज्जल भविष्य की कामना की।

शिक्षक देश के भविष्य निर्माता: रामेश्वर शर्मा

शिक्षक सम्मान समारोह में स्वागत भाषण देते हुए कार्यक्रम के आयोजक-विधायक रामेश्वर शर्मा ने कहा कि शिक्षक इस देश के भविष्य निर्माता है, जिस प्रकार से शिक्षा का प्रसार बढ़ेगा भारत पुनरू विश्व गुरू की ओर आगे बढ़ेगा। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान अच्छी शिक्षा व्यवस्था की चिंता कर रहे हैं। हमने गुरू-शिष्य परंपरा की सभ्यता और संस्कृति को जीवंत करने के उद्देश्य से, सरकारी और नीजि सभी विद्यालयों के शिक्षकों के सम्मान का कार्यक्रम कुछ वर्ष पूर्व शुरू किया है। सम्मान की पंरपरा को जीवित रखना समाज का काम है। सम्मान खत्म हो जाएगा तो सब कुछ समाप्त हो जाएगा। यह सम्मान का भाव ही है जो व्यक्ति को भी श्रेष्ठ नागरिक बनने के लिए प्रेरित करता है। उन्होने कहा कि हम अपने विधानसभा क्षेत्र के सभी 10600 शिक्षकों का सम्मान करना चाहते हैं। लेकिन एक कार्यक्रम में यह संभव नहीं हो सकता इसीलिए क्रमशरू हम सभी शिक्षकों का सम्मान कर रहे हैं। विधायक  शर्मा ने महाभारत काल के एक वृतांत का वर्णन करते हुए कहा कि महाराज धृतराष्ट्र ने गुरू द्रोणाचार्य को अपने महल पर बुलाकर कर कहा था कि यह मेरे 100 पुत्र हैं इन्हें आप अच्छी शिक्षा दें। दूसरी ओर रानी कुंती स्वयं गुरू द्रोणाचार्य के आश्रम पहुंची और कहा कि गुरूदेव आज से ये पांचों पांडव आपके पुत्र हैं, आप इन्हें अपने अनुसार समुचित शिक्षा दें। इसके बाद के परिणाम सबके सामने है महाराज धृतराष्ट्र के 100 कौरव पुत्र समाज में बहुत सम्मान हासिल नहीं कर पाए जबकि गुरू के चरणों में समर्पित हुए 5 पांडवों में सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर भी निकले, धर्मराज भी हुए, महाबलशाली और विद्वान, महाराथी भी निकले।  शर्मा ने कहा कि जब किसी शिष्य को सफलता मिलती है तो गुरू का सम्मान तो बढ़ ही जाता है, साथ ही गुरू की जिंदगी भी बढ़ जाती है। हम सब को आज यहां यह संकल्प लेंगे कि आने वाला भारत संपूर्ण शिक्षित होगा। हर घर में शिक्षा का दिया जलेगा । 

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